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महात्मा गांधी पर निबंध: छात्रों के लिए महात्मा गांधी पर 500 शब्दों का महत्वपूर्ण निबंध

महात्मा गांधी पर निबंध: दोस्तों आज के इस लेख में हम छात्रों के लिए महात्मा गांधी पर 500 शब्दों का महत्वपूर्ण निबंध नीचे दिया गया है। छात्र इस निबंध को अपने अनुसार स्कूल के फंक्शन में सुना सकते है या निबंध लेखन प्रतियोगिता में इस्तेमाल कर सकते है। आज के इस लेख में हम Mahatma Gandhi Essay in Hindi में हमारे देश की स्वंत्रता में बहुत बड़ा योगदान देने वाले महात्मा गांधी जी जिन्हे हम बापू के नाम से भी जानते है उन्ही के बारे में जानने के साथ ही 100 शब्दों, 300 शब्दों, 500 शब्दों और 1000 शब्दों में निबंध लिखना सीखेंगे।

महात्मा गांधी पर निबंध 500+ शब्दों में | Mahatma Gandhi Essay in Hindi

महात्मा गांधी पर 500+ शब्द निबंध: भारत के स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख चेहरे के तौर पर देखे जाने वाले महात्मा गांधी को आज किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। सत्य अहिंसा को अंग्रेजो के खिलाफ एक अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल करके गांधी जी ने देश को स्वतंत्र करवाने में एक महत्वपूर्ण योगदान निभाया। महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक पूरक के तौर पर पहचाने जाते हैं।

बहुत ही सामान्य से परिवार में जन्मे महात्मा गांधी के पिता एक दीवान का काम करते थे और महात्मा गांधी की माता पुतलीबाई सामान्य गृहिणी थी। गांधी जी की मां काफी धार्मिक और आस्थावान महिला थी। इसलिए उन्होंने बचपन से ही गांधीजी के मन पर सनातन धर्म के संस्कार करने शुरू कर दिए थे। इन्हीं संस्कारों का परिणाम यह रहा कि गांधीजी के विचार एक संत के समान विकसित होते चले गए।

जब अंग्रेजों ने अपने भारत देश पर आक्रमण किया था उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि भविष्य में महात्मा गांधी जैसा एक राष्ट्रभक्त भारत माता को स्वतंत्र करने के लिए अहिंसा को अपना हथियार बनाकर अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाएगा। अंग्रेजो के खिलाफ पढ़कर संघर्ष करते हुए महात्मा गांधी ने इस बात को सिद्ध किया कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

महात्मा गांधी पर निबंध 500+ शब्दों में | Essay on Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी पर निबंध 500+ शब्दों में

महात्मा गांधी का जन्म स्थान और परिवार (Mahatma Gandhi Birth and Family)

भारत में राष्ट्रपिता और बापू के नाम से महसूर मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 के दिन गुजरात के पोरबंदर नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। गांधी जी के पिता का नाम करमचंद गांधी था। गांधी जी के पिता कर्मचंद गांधी पोरबंदर में ही दीवान का काम करते थे। गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी की माता एक बहुत ही सरल और स्वाभिमानी महिला की।

गांधी जी जब केवल 13 वर्ष के हुए तभी उनकी शादी कस्तूरबा गांधी से करवा दी गई थी। हालांकि कस्तूरबा गांधीजी से उम्र में 6 महीने बड़ी थी। लेकिन कस्तूरबा और महात्मा गांधी के पिता के दोस्ताना संबंध से। इसलिए दोनों ने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का फैसला करते हुए कस्तूरबा के साथ महात्मा गांधी की शादी करवा दी। लेकिन गांधीजी के जीवन का लक्ष्य परिवार में फंस कर रहना बिल्कुल नहीं था।

गांधी जी बचपन से ही काफी शांत स्वभाव वाले व्यक्तित्व थे। अपने स्कूल में भी गांधीजी हमेशा अन्य बच्चों से अलग ही रहते थे। देश भक्ति का गुण उनके अंदर बचपन से ही समाया हुआ था। गांधीजी पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगाते थे। गांधी जी को पढ़ना लिखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। यहां तक की स्कूल में कई बार उन्हें मंदबुद्धि बालक तक कह दिया जाता था।

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महात्मा गांधी जी की शिक्षा (Mahatma Gandhi Education)

गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा उनके पैतृक गांव पोरबंदर में ही हुई। जैसा कि हमने बताया गांधीजी पढ़ने लिखने में काफी ज्यादा होशियार नहीं थे। इसके चलते उन्हें हमेशा अपने शिक्षकों की डांट भी सुननी पड़ती थी। पढ़ने लिखने में बहुत ही सामान्य से गांधी जी ने अपनी उच्च शिक्षा गुजरात के राजकोट से हासिल की। तब तक उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब पूरी दुनिया में उन्हें मान और सम्मान मिलने लगेगा।

राजकोट से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांधीजी ने इंग्लैंड का रुख किया। गांधीजी बैरिस्टर बनने की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां पर उन्होंने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं की बल्कि इंग्लैंड की संस्कृति और सभ्यता को भी समझने का लगातार प्रयास किया। पढ़ाई होने के बाद उन्हें किसी मामले के चलते अफ्रीका का दौरा करना पड़ा।

लेकिन इंग्लैंड से अफ्रीका के बीच सफर करने के दौरान गांधीजी के साथ काफी अभद्रता वाला व्यवहार भी हुआ। दरअसल यह व्यवहार गांधीजी के रंग को लेकर था। पश्चिमी देशों में इस तरह का रंगभेद देखकर गांधीजी का मन संतप्त तो था लेकिन वह प्रतिक्रिया देने से बचते थे। ट्रेन में अपने पास टिकट होने के बावजूद भी गांधीजी का तिरस्कार किया गया और उन्हें रेल के डिब्बे से उतार दिया गया।

लेकिन गांधीजी इन सभी बातों का बहुत ही शांत चित्त होकर विचार कर रहे थे। जब वह भारत में आए तो भारत में उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से लिप्त हो चुका भारतीय समाज देखा और इस समाज की कमजोरियों को भी समझने का प्रयास किया। ऐसी सारी परिस्थितियों को आधार बनाकर ही गांधीजी ने अंग्रेजो के खिलाफ इतना बड़ा संग्राम करने में कामयाबी पाई।

महात्मा गांधी द्वारा किए गए आंदोलन [Movements done by Mahatma Gandhi]

महात्मा गांधी ने अपने जीवन काल में राजनीतिक से लेकर सामाजिक ऐसे कई तरह के आंदोलन की एक। गांधी जी के द्वारा किए गए आंदोलनों का प्रभाव काफी गहरा भी हुआ। अफ्रीका से भारत वापस लौटने के बाद कुछ साल तक गांधी जी ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का बारीकी से आकलन किया। यह सारा आकलन करने के बाद फिर उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर स्वाधीनता की उपासना करनी शुरू कर दी।

रॉलेट एक्ट कानून का विरोध

गांधीजी के जीवन का सबसे पहला आंदोलन 1919 में हुआ जो आंदोलन रॉलेट एक्ट कानून के विरोध में किया गया था। यह ऐसा कानून था कि जिसके तहत अंग्रेज सरकार किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर गिरफ्तार कर उसे जेल में डाल सकती थी। गांधीजी ने इस कानून का पुरजोर विरोध करते हुए बड़ा आंदोलन किया।

रोलेट एक्ट कानून: यह एक ऐसा कानून था जिसमें सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए जेल में बंद कर सकती थी। और साथ के साथ उसे न ही अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं होता था।

दांडी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन

इसके अलावा उन्होंने बाद में विशाल दांडी यात्रा का भी नेतृत्व किया। साल 1920 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को मजबूती प्रदान करने का काम किया। यह होने के बाद साल 1930 में असहयोग आंदोलन ने पूरे देश में एक अलग ही जोर पकड़ लिया। इस आंदोलन को और बड़ा बनाने के लिए सबसे बड़ा श्रेया गांधी जी को ही जाता है।

भारत छोड़ो आंदोलन

इसके बाद 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो या फिर 15 अगस्त 1947 की आजादी यह सभी बड़े आंदोलन में गांधीजी ने काफी अहम किरदार निभाया था।

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महात्मा गांधी गांधी जी को दी गई उपाधियां 

गांधी जी के द्वारा भारत के स्वतंत्रता में दिए गए इतने महत्वपूर्ण योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें कई तरह की उपनाम से भी संबोधित किया जाने लगा। रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा नाम की उपाधि दी थी। इसके अलावा साबरमती से संबंध होने के चलते उन्हें साबरमती के संत की उपाधि दी गई है।

इसके अलावा गांधी जी को प्यार से बापू भी कह कर बुलाया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि स्वयं सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि से संबोधित किया था। हालांकि राष्ट्रपिता की उपाधि के ऊपर काफी विवाद जरूर होता है। क्योंकि गांधीजी श्री रामचंद्र की उपासना करते थे वहीं भगवान रामचंद्र भारत को अपनी मां मानते थे। तो फिर गांधीजी राष्ट्रपिता कैसे हो सकते हैं ऐसा विवाद चलता रहता है।

उपाधि उपाधि प्रदानकर्ता
महात्मा रविंद्रनाथ टैगोर
राष्ट्रपिता सुभाषचन्द्र बोस/ जवाहरलाल नेहरु द्वारा
बापू सुभाष चंद्र बोस

महात्मा गांधी का अंतिम समय (Death of Mahatma Gandhi)

गांधीजी की हत्या कैसे हुई? गांधी जी का अंतिम समय काफी दुखद साबित हुआ। दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना सभा खत्म होने के बाद एक व्यक्ति ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। वह दिन था 30 जनवरी 1948 (78 साल की उम्र) का जब भारत देश विभाजन के काले दिन से उभर ही रहा था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि गांधी जी की मौत इतनी जल्दी हो जाएगी और हमे ऐसे छोड़ कर चले जायेंगे।

उनकी हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी। दिल्ली के बिरला भवन में गांधीजी अपने साथियों के साथ बाहर निकल ही रहे थे। तब नाथूराम गोडसे गांधीजी के सामने आकर पहले उनके पांव छूता है और फिर अचानक बंदूक निकालकर गांधीजी पर हमला कर देता है। जिसके बाद गांधी जी की तुरंत ही मौके पर दुखद मौत हो गई थी।

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FAQs – महात्मा गांधी पर निबंध

प्रश्न: महात्मा गांधी से प्रभावित किन्हीं दो नेताओं के नाम बताओ?

उत्तर: मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला दोनों नेता गांधीजी से बहुत प्रभावित है।

प्रश्न: महात्मा गांधी की हत्या कैसे हुई थी?

उत्तर: गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा 30 जनवरी 1948 को गोली मार कर की थी।

प्रश्न: महात्मा गांधी कौन-कौन सी उपाधियाँ मिली हुई है?

उत्तर: गांधी जी को बापू (सुभाषचन्द्र बोस द्वारा), महात्मा (रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा), राष्ट्रपिता (सुभाषचन्द्र बोस/ जवाहरलाल नेहरु द्वारा) उपाधियाँ मिली हुई है।

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