Join WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
YouTube Channel Join Now

चौहान वंश का इतिहास, प्रमुख शासक, कुलदेवी, पतन के कारण और महत्वपूर्ण तथ्य

चौहान वंश का इतिहास, प्रमुख शासक, कुलदेवी, पतन के कारण और चौहान वंश से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य आपको इस लेख में मिलेंगे। चौहान वंश का राजस्थान के इतिहास में बड़ा योगदान रहा हैं। राज्य व देश के दूसरे भागों पर उनका आधिपत्य रहा हैं। यह एक प्रमुख राजपूत वंश रहा हैं।

चौहान वंश का इतिहास और जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य [Chauhan History in Hindi]

Chauhan History in Hindi – चौहान वंश के इतिहास के बारे में बात की जाए तो यह उत्तर भारत व मध्य भारत के क्षेत्रों में शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों में से एक थे। यह राजपूत वंशावली के 36 उपजातियों के प्रमुख के रूप में विद्यमान रहे। कुछ इतिहासकार चौहान वंश की उत्पत्ति के विषय में बताते हैं, कि ये अग्नि वेदी से निकलकर इस धरा में आये थे। अभी भी यह चौहान वंशावली अजमेर, पुष्कर, राजस्थान ,उत्तर प्रदेश, जयपुर के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान है। 

चौहान राजवंश की 14 शाखाएं भी मौजूद हैं, जिसकी जानकारी लेखक चंद्रवरदाई द्वारा कृत पृथ्वीराज रासो में बतलाई जाती है। शिलालेखों के माध्यम से भी इनकी जानकारी हमें प्राप्त होती है, जिसमे इसकी वंशावली व साथी राजाओं के बारे में पता चलता है। 

आज इस लेख के माध्यम से हम चौहान वंश के इतिहास के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि चौहान वंश की वंशावली व उनके क्षेत्र विस्तार उनके प्रमुख कारण और मुख्य राजा कौन थे। जिन्होंने चौहान वंश को 12वीं और 11वीं शताब्दी के आसपास शिखर तक पहुंचाने में मदद की और चौहान वंश को उन बुलंदियों तक पहुंचाया। जिन पर पहुंचना अन्य राजपूत राजाओं के बस में नहीं था। 

चौहान वंश का इतिहास | Chauhan History in Hindi

चौहान वंश का परिचय

इतिहासविदों की बात करें तो रायसन महोदय चाहमान वंश कहकर संबोधित करते है। चौहानों को ससेैनिया मूल का भी मानते हैं। 8वीं और 12वीं स्ताब्दी के लगभग विभिन्न राजपूत राजा राज्य करते थे, जिनमें चंदेल, परमार और कई वंश थे। लेकिन उस समय चौहान शासकों का साम्राज्य विस्तार अधिक होने के कारण अधिक नाम कमाया। 

चौहान वंश के बारे में और अधिक जानकारी हमें कई बड़े महाकाव्य और पुस्तकों से मिलती है। जिन की बात करें तो हमीर महाकाव्य और पृथ्वीराज विजय के अनुसार चौहान वंशावली को सूर्य के पुत्र के रूप में मानते हैं। 

चौहान वंश का जन्म

माउंट आबू के पर्वत में हुए अग्नियग कुंड से निकले विभिन्न राजपूतों में से एक प्रमुख राजपूत वंश के रूप में इस चौहान वंश का जन्म हुआ। पहले तो यह अन्य राजपूत शासकों के यहां सामंती राजा के रूप में कार्य करते थे, लेकिन बाद में स्वतंत्र रूप से राजा घोषित कर अपनी सीमा का विस्तार करने लगे। यह कुल आठवीं और बारहवीं शताब्दी के बीच में अत्यंत प्रसिद्ध राजपूत शासकों के रूप में हमें दिखाई देता है जिसका साहित्यिक विस्तार अत्यंत ही अधिक है। 

चौहान वंश के प्रमुख शासक 

दुर्लभराज प्रथम चौहान वंश के पहले महत्वपूर्ण शासक के रूप में जाने जाते हैं, उनके पिता का नाम चंद्रराज प्रथम है। यह कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार वंश की अधीनता स्वीकार करते थे और उनके सामान्य थे। इन्होंने प्रतिहार वंश राजा तथा दुर्लभ राज ने लगभग सम्राट की ओर से त्रिकोण संघर्ष में भाग लिया था जिसकी विजय के उपरांत इन्होंने शासक के रूप में गद्दी संभाली थी। 

वैसे तो बहुत सारे शासकों ने चौहान वंश की वंशावली को आगे बढ़ाया है। लेकिन सबसे प्रसिद्ध राजा के रूप में पृथ्वीराज तृतीय रहा है, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी प्रसिद्धि सबसे अधिक बढ़ाई है। जिसका कारण चंदेल राजा जयचंद से विद्रोह और उसकी पुत्री के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने के कारण ही उसने राजपूत शासकों में चौहान वंश की प्रसिद्धि का इस स्थर अलग ही रख दिया था।

सिंहराज स्वतंत्रदाता

चौहान वंश शुरू में सामंत बनकर ही कार्य करना प्रारंभ किए। परंतु उनको असली स्वतंत्रता सिंहराज के आने के उपरांत प्राप्त हुए । यह वाक्यपति राज का पुत्र था, जिसने चौहान शासकों को स्वतंत्र शासक के रूप में उभारा और खुद महाराजाधिराज की उपाधि धारण की उसने प्रतिहारों के विरुद्ध अपनी स्वाधीनता घोषित कर ली। इसका पता हमें हर्ष के अभिलेख में पता चलता है। उसने दिल्ली के तोमर, राजस्थान प्रतिहार को पराजित किया। और कई राजकुमार और सामंतों को बंदी बना लिया और उसने चौहान शासकों को स्वतंत्र राजा के रूप में राज्य करने का अधिकार दिलाया। 

पृथ्वीराज तृतीय 

राजा सोमेश्वर के पश्चात उसका पुत्र पृथ्वीराज चौहान वंश का राजा बना। जब उसका राज्यभिषेक हुआ वह मात्र 15 वर्ष की आयु का था। कुछ समय पश्चात ही उसने राज्य की सीमाओं को बढ़ाना और अपने मंत्री के साथ सीमाओं का विस्तार करना प्रारंभ कर दिया सीमा विस्तार करने में उसकी सबसे बड़ी सहायता उसके मुख्यमंत्री कदंब और चाचा भूलनकमल से बड़ी सहायता मिली इसका फायदा उठाकर उसने राज्य विस्तार जारी रखा। 

इन्होंने वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था। उनके इतने बड़े साम्राज्य की राजधानी अजमेर थी। वैसे तो पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध बहुत सारे हिंदू राजा थे मगर उनके खिलाफ उन्होंने सेनिय सफलता हासिल की थी। पृथ्वीराज अपने पड़ोसी राजा जयचंद के साथ मिलकर इस्लामी आक्रमण को भी रोक रहे थे। गौरी राजवंश के शासक मोहम्मद गौरी को उन्होंने 1190 में तराइन की लड़ाई में हरा दिया था। बाद में जयचंद की पुत्री से विवाह करने के बाद इनका संबंध जयचंद के साथ खराब हो गया जिनसे मिलकर 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को धोखे से हरा दिया।

पृथ्वीराज और मोहम्मद गजनी के बीच लड़ाई

आमतौर पर पृथ्वीराज और मोहम्मद गजनी के बीच जो लड़ाई का ही उल्लेख किया गया है मगर कुछ हिंदू और जैन धर्म के लेखकों ने 9 लड़ाई का उल्लेख भी किया है। जिसमे जैन धर्म के हम्मीर महाकाव्य दावा करता है कि 9 में से 8 लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान जीत गए थे। जिसमें से 7 लड़ाइयो में मोहम्मद गोरी लड़ाई बीच में छोड़कर भाग गया था और 1190 की तराइन की लड़ाई में बुरी तरह हार गया था। मगर 1192 में जब मोहम्मद गौरी वापस आता है तो पृथ्वीराज के आपसी संबंध काफी खराब हो गए थे जिसमें जयचंद के धोखा देने के कारण पृथ्वीराज यह लड़ाई हार जाते हैं।

कुछ समय तक मोहम्मद गौरी के पास बंदी रहने के बाद दोनों के बीच एक झड़प होती है जिसमें दोनों एक दूसरे को मार देते हैं। 

List of Rulers of Chauhan Dynasty

शासक का नामअवधि
चाहमान
वासुदेवछटी शताब्दी
सामन्तराज684-709 ईस्वी
नारा-देव709–721 ईस्वी
अजयराज प्रथम721–734 ईस्वी
विग्रहराज प्रथम734–759 ईस्वी
चंद्रराज प्रथम759–771 ईस्वी
गोपेंद्रराज771–784 ईस्वी
दुर्लभराज प्रथम784–809 ईस्वी
गोविंदराज प्रथम809–836 ईस्वी
चंद्रराज द्वितीय836-863 ईस्वी
गोविंदराजा द्वितीय863–890 ईस्वी
चंदनराज890–917 ईस्वी
वाक्पतिराज प्रथम917–944 ईस्वी
सिम्हराज944–971 ईस्वी
विग्रहराज द्वितीय971–998 ईस्वी
दुर्लभराज द्वितीय998–1012 ईस्वी
गोविंदराज तृतीय1012-1026 ईस्वी
वाक्पतिराज द्वितीय1026-1040 ईस्वी
विर्याराम1040 ईस्वी
चामुंडराज चौहान1040-1065 ईस्वी
दुर्लभराज तृतीय1065-1070 ईस्वी
विग्रहराज तृतीय1070-1090 ईस्वी
पृथ्वीराज प्रथम1090–1110 ईस्वी
अजयराज द्वितीय1110-1135 ईस्वी
अर्णोराज चौहान1135–1150 ईस्वी
जगददेव चौहान1150 ईस्वी
विग्रहराज चतुर्थ1150–1164 ईस्वी
अमरगंगेय1164–1165 ईस्वी
पृथ्वीराज द्वितीय1165–1169 ईस्वी
सोमेश्वर चौहान1169 -1178 ईस्वी
पृथ्वीराज तृतीय1178–1192 ईस्वी
गोविंदाराज चतुर्थ1192 ईस्वी
हरिराज1193–1194 ईस्वी

चौहानवंश और गढ़वाल वंश

चौहान और गढ़वाल वंश दोनों में शुरू से ही प्रतिद्वंदिता देखने को मिलती थी। प्रस्पर शत्रुता का कारण कन्नौज का राज्य था, लेकिन बाद में यह तब और बढ़ गया जब जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण पृथ्वीराज द्वारा कर लिया गया इसका पता हमें रासो साहित्य से पता चलता है। इसके उपरांत ही जयचंद ने पृथ्वीराज से अपमान का बदला लेने का निश्चय कर लिया।

चौहान वंश का पतन

तराइन के द्वितीय युद्ध और मोहम्मद गौरी के साथ संघर्ष व अन्य राजपूत राजाओं का विदेशियों के साथ मिलकर हमला करने से चौहान शासकों को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा।

इसमें उन्हें अपनी सेना के साथ-साथ अपने राज्य पाठ सीमा विस्तार आदि को भी खोना पड़ा और इसके उपरांत वह कभी भी उभर कर नहीं आ पाए इसका कारण अन्य राजपूत शासकों के विरुद्ध विद्रोह करना मान सकते हैं। 

चौहान वंश की कुलदेवी [Chauhan Vansh Kuldevi]

चौहान वंश ही नहीं सभी राजपूत राजा देवी के अनंत उपासक थे। वह विभिन्न रूप में देवी के स्वरूपों का पूजा पाठ करते थे, वही बात की जाए तो देवी शाकंभरी, मां शारदा और विभिन्न देवियों के स्वरूपों का पूजा पाठ करके वह अपनी शक्तियों के उपासक के रूप में जाने जाते थे। वह देवियों से अपनी सेनाओं की सुरक्षा, राज्य विस्तार और विभिन्न प्रकार के चीजों को मांगते थे। उसके बदले में अपनी निष्ठा और बलि प्रदान करते देवी को प्रदान करते थे। 

राजस्थान मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना 2023

अटल बिहारी वाजपेयी जीवनी

Lata Mangeshkar Biography in Hindi

चौहान वंश का इतिहास – निष्कर्ष

वैसे तो चौहान वंश के राजाओं ने बहुत सारी प्रसिद्धया प्राप्त करी। परंतु पृथ्वीराज तृतीय (चौहान वंश का इतिहास – Chauhan History in Hindi) के उपरांत इनकी प्रसिद्धियों का क्षरण होने लगा क्योंकि अन्य राजपूत राजाओं के मन में इनके प्रति हीन भावना बहने लगी साथ ही साथ तराइन का युद्ध भी हो चुका था। जिसमें चौहान राजा पृथ्वीराज की बुरी तरीके से हार हो चुकी थी। जिसके उपरांत चौहान शासक उबर नहीं पाए और इनका पतन प्रारंभ हो गया, जिससे इनकी राज्य ध्वस्त हो गया और सीमा विस्तार खत्म हो गया। 

Join Telegram GroupSubscribe YouTube ChannelDownload Mobile App

FAQs – चौहान वंश का इतिहास अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न: चौहान वंश का इतिहास क्या हैं?

उत्तर: चौहान वंश एक भारतीय राजपूत राजवंश था। जिसके शासकों ने वर्तमान के गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, एवं इसके समीपवर्ती क्षेत्रों पर 7वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक शासन किया।

प्रश्न: चौहान वंश के कितने राजा हुए?

उत्तर: चौहान वंश में कई प्रतापी राजा रहे अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार चौहान वंश के कुल 34 राजा रहे।

प्रश्न: चौहान वंश की कुलदेवी कौन हैं?

उत्तर: चौहान वंश में देवी शाकंभरी, मां शारदा और विभिन्न देवियों को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता हैं।

प्रश्न: चौहानों का अंतिम राजा कौन था?

उत्तर: पृथ्वीराज चौहान को चौहान वंश के अंतिम शासक माना जाता हैं। उन्हें मोहम्मद गौरी द्वारा छल से हरा कर मार डाला था।

Join WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
YouTube Channel Join Now
Mobile App Download Click Here
Google News Follow Now

Leave a Comment