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कुषाण वंश का इतिहास, शासक, स्थापना और पतन के कारण

कुषाण वंश का इतिहास: आज के इस लेख में हम कुषाण राजवंश का सम्पूर्ण इतिहास, शासकों का नाम, स्थापना और पतन के कारण (History of Kushan dynasty, names of rulers, cause of rise and fall and important facts in Hindi) आदि के बारे में जानकारी आपके साथ साँझा करने जा रहे है।

कुषाण वंश का इतिहास (History of Kushan Dynasty)

कुषाण वंश भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध शासनकाल में से एक है। भारत में राजा कनिष्क के द्वारा आर्किटेक्चर में बहुत बड़ा योगदान दिया गया है जो कुषाण वंश से संबंध रखते थे। देश के सभी नागरिकों को भारत के इतिहास के प्रमुख शासन काल के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए इस वजह से आज हम आपके समक्ष कुषाण वंश का इतिहास लाए हैं।

नीचे दी गई सभी जानकारियों को पढ़ने के बाद आप कुशान वंश के इतिहास और उनके प्रमुख राजाओं के बारे में समझ पाएंगे। इस लेख का इस्तेमाल आप अपने परीक्षा की तैयारी के लिए भी कर सकते हैं भारत में कुषाण किस प्रकार आए और कुषाण वंश का क्या योगदान रहा है इसकी जानकारी नीचे पढ़ें।

कुषाण काल का उदय | कुषाण राजवंश का सम्पूर्ण इतिहास

भारत के अति प्राचीन राजवंशों में से एक कुषाण राजवंश बहुत प्रमुख राजवंश रहा है कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कडफिसेस (Kujula Kadphises) ने किया था और कुषाण वंश का कार्यकाल 1 ईसवी से लेकर 151 ईसवी तक रहा और कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली और प्रतापी शासन राजा कनिष्क ने किया था।

भारत में कुषाण वंश का उदय ऐतिहासिक प्रामाणिकता के आधार पर कई इतिहासकार का मानना है। कुषाण वंश चीन के पश्चिमी इलाके से इसका उदय हुआ युएझी जनजाति कबीले से हुआ युएझी राजा के मृत्यु के पश्चात रानी ने कार्यभार संभाला तब अन्य कबीलो के आक्रमण से बचने के लिए रानी को स्थान छोड़ कर जाना पड़ा।

और सुरक्षित स्थान की तलाश में यह कबीला एली नदी के क्षेत्र में अपना डेरा डाला बाद में उन्हें लघु हाची कहा गया। और जो लोग भारत में प्रवेश कर गए उन्हें महान हाची कहा गया इस राजवंश का सामना शको से भी हुआ था। और यह कपिला सैन्य प्रशिक्षण और संख्या में ज्यादा होने से इन्होंने सको को पराजित कर दिया।

कालांतर में कुषाण काल को खस, कुस नाम से भी जाना गया। कुषाण वंश का शासन भारत में कश्मीर पंजाब मथुरा तक्षशिला तक विस्तृत रूप में फैला हुआ था। कुषाण वंश के शासनकाल में खरोष्ठी और यूनानी लिपि में लिखित सोने और चांदी की मुद्राएं का प्रचलन शुरू हुआ।

चौहान वंश का इतिहास

जिसका पूरा श्रेया राजा कडफिसेस को जाता है कुषाण वंश के शासकों ने भारतीय संस्कृति परंपराओं का पालन करना शुरू कर दिया था। इसीलिए उनके द्वारा बनाए गए सिक्कों पर त्रिशूल बैल शिव के चित्रों को देखा गया है। यह लोग भारतीय संस्कृति में पूरी तरह से मिल गए थे।

कुषाण वंश के प्रमुख शासक के नाम

1.विम कडफिसेस

विम कडफिसेस के पिता का नाम कुजुल कडफिसेस था। कुषाण वंश का सबसे ताकतवर राजा होने के साथ ही इसे महेश्वर की उपाधि धारण की। विम कडफिसेस अपने राज्य के विस्तार के लिए उसे जाना जाता है। राज्य विस्तार के लिए चीन पर भी आक्रमण किया लेकिन कटपीस को उसमें हार झेलनी पड़ी है। लेकिन मध्य भारत के पश्चिम और दक्षिण भाग तक उसने अपना राज विस्तार कर लिया।

शैव धर्म के उपासक विम कडफिसेस के समय के सिक्के भारत में प्राप्त हुए। जिस पर शिव बैल त्रिशूल का चित्र अंकित था।

अफगानिस्तान के राबाटक से उसका एक अभिलेख प्राप्त हुआ, जिससे यह जानकारी मिली की कुजुल कडफिसेस ओएमो टाकटु के बारे में भी लिखा हुआ हैं।

2.कुषाण महान शासक कनिष्क

कुषाण वंश के सबसे महान शासक कनिष्क सबसे प्रसिद्ध हैं।

कनिष्क के इतिहास के बारे में इतिहास कारों के कई मत हैं। बौद्ध ग्रंथ के अध्ययन करने से या ज्ञात होता है कि जब कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया तब वहां जीत के बाद राजा से बड़ी रकम की मांग की पाटलिपुत्र के राजा ने तब पाटलिपुत्र के विद्वान अश्वघोष तथा महात्मा बुद्ध के एक जल पात्र का दान किया।

इस खास उपहार को प्राप्त करके राजा कनिष्क अति प्रसन्न हुए और पाटलिपुत्र के राजा को दंडित किए बिना ही वापस लौट गए।

राजा कनिष्क का राज्य कौशांबी से लेकर श्रवंती तक फैला हुआ था। कौशांबी और श्रवंती मैं मिले अभिलेख से यह जानकारी प्राप्त हुई बाद में चलकर कनिष्क अमीन कश्मीर तथा चीन की भी कुछ भूभाग को जीता उसके बाद मध्य एशिया में काशगर, खोतान और यारकंद जैसे स्थानों पर भी कुशाल वंश का अधिपत्य स्थापित करवाया।

कुषाण वंश की प्रशासनिक व्यवस्था

कुषाण वंश की छोटे-छोटे प्रांतों को क्षत्रप कहा जाता था। कुषाण वंश की प्रशासनिक व्यवस्था सुनियोजित थी और अधिकतर शक्तियां सेना के पास में थी। कुषाण वंश की व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए छोटे-छोटे प्रांतों को विभाजित करके रखा गया था और उसके ऊपर अलग-अलग अधिकारियों की नियुक्ति भी की गई थी।

कुषाण वंश के राजाओं का साहित्य और कला में योगदान

कुषाण वंश के राजाओं का कला और साहित्य में विशेष योगदान रहा है कुषाण वंश के राजाओं ने अपने राज्य में कई विद्वान और साहित्यकारों को आश्रय दिया हुआ था। जिनमें से अश्वघोष वासु मित्र और नागार्जुन प्रमुख थे। उस वक्त के विश्व प्रसिद्ध विद्वान भी कुषाण वंश के शासकों के दरबार में रहते थे।

आयुर्वेद की महान रचना चरक संहिता की रचनाकार सुश्रुत चरक को भी कुषाण वंश के राजाओं ने अपने क्षेत्र में आश्रय दिया था।

अश्वघोष ने बुद्ध रचयिता की रचना कुषाण काल के शासकों के अधीन ही किया था। और प्रज्ञापारमिता सूत्र की रचना नागार्जुन ने कुषाण काल के समय दरबार से ही किया। कुषाण कालीन शासकों ने समय-समय पर विद्वानों को प्रोत्साहित और राज्य में विशेष दर्जा भी दिया हुआ था।

कुषाण वंश की वंशावली

कुषाण वंश के शासकों 30 ईसवी से लेकर 225 ईसवी तक शासन किया कुषाण वंश की वंशावली इस प्रकार से है

  1. कुजुल कडफिसेस
  2. विम तक्षम
  3. विम कडफिसेस
  4. कनिष्क
  5. वशिष्ठ
  6. हुविष्क
  7. वासुदेव प्रथम
  8. कनिष्क द्वितीय
  9. वासुदेव द्वितीय (कुषाण वंश का अंतिम शासक)

कुषाण वंश के पतन के मुख्य कारण

  1. कुषाण वंश का शासन पूरी तरह से सैनिकों के पास थी जिससे इनकी आंतरिक व्यवस्था सुदृढ़ नहीं हो पाई और आंतरिक कलह भी शुरू हो गई जिसके कारण कुषाण वंश के पतन शुरू हुआ।
  2. कुषाण वंश का मुख्य मकसद विजय प्राप्त करना था और राज्य के विस्तार में ही उनका विशेष ध्यान होता था राज्य के आंतरिक नजर अंदाज करने से राज्य अंदर से खोखला होता गया।
  3. कुषाण वंश के साम्राज्य का पतन जिन छोटे-छोटे राजाओं ने अधीनता स्वीकार की थी उन राज्यों पर भी शासन द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था और यह भी एक कारण है कुषाण वंश के पतन का।
  4. ढीली आंतरिक व्यवस्था के चलते कुषाण वंश के महान शासक कनिष्क द्वारा किए गए महान कार्यों को भी प्रभावी आयाम नहीं मिल पाया यह भी एक मुख्य कारण है पतन का।
  5. कुषाण वंश के शासकों से अधिनस्थ राज्यों की जनता सुखी नहीं थी कई जगह पर कुषाण वंश के शासकों का भारी विरोध भी होता था यह सबसे प्रमुख कारण है कुषाण वंश के पतन का।

सारांश – कुषाण वंश का इतिहास (Conclusion)

आपने इस शानदार लेख में कुषाण काल के साम्राज्य (कुषाण वंश का इतिहास) के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। आप इस लेख को icdsupweb.org पर पढ़ रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपको बहुत ही अच्छी लगी होगी हमने इस लेख में कुषाण काल का उदय से लेकर पतन तक का और महान शासकों के बारे में और उनकी वंशावली की भी चर्चा की है। आप के लिए हमने और भी अच्छी-अच्छी जानकारी भरी पोस्ट लिखी हैं ।आप उन पोस्टों को भी पढ़ें पोस्ट पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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FAQs – कुषाण वंश का इतिहास से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न: कुषाण वंश की स्थापना किसने की?

उत्तर: कुषाण राजवंश की शुरुआत कुजुल कडफिसेस द्वारा की गई थी।

प्रश्न: कुषाण वंश की स्थापना कब हुई?

उत्तर: कुषाण वंश की स्थापना 15 ईस्वी में हुई थी।

प्रश्न: कुषाण वंश का अंत कैसे हुआ?

उत्तर: सम्राट कनिष्क की मृत्यु होने के बाद कुषाण वंश का पतन शुरू हो गया था। क्योंकि कनिष्क के बाद के राजाओं ने दूसरे राजाओं की अधीनता को स्वीकार करना शुरू कर दिया था। फिर धीरे-धीरे कुषाण साम्राज्य कई भागों में विभाजित हो गया। फलस्वरूप एकता में कमी के कारण कुषाण वंश पतन की और बढ़ता चला गया।

प्रश्न: कुषाण वंश के बाद कौन सा वंश आता है?

उत्तर: कुषाण वंश के पतन के बाद इतिहास में सातवाहन वंश का उदय होता है।

प्रश्न: कुषाण वंश कहाँ तक फैला हुआ था?

उत्तर: कुषाण वंश के शासन का विस्तार आज के कश्मीर, पंजाब, मथुरा और तक्षशिला तक फैला हुआ था। इस राजवंश का प्रभाव आज के पाकिस्तान, तिब्बत और चीन के क्षेत्रों में भी था।

प्रश्न: कुषाण वंश का सबसे महान राजा कौन था?

उत्तर: कुषाण वंश सबसे महान राजा कनिष्क था। जिसने अपने राज्ये का विस्तार किया।

प्रश्न: कुषाण वंश कब से कब तक रहा?

उत्तर: 15 ईस्वी से 151 ईस्वी तक।

प्रश्न: कुषाण वंश का अंतिम राजा कौन था?

उत्तर: वासुदेव द्वितीय को कुषाण वंश का अंतिम राजा माना जाता है।

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